सफर-ए-रात से अक्सर मुखातिब होता रहता हूं, इंतेज़ार-ए-मंज़िल को मैं रातभर सोता रहता हूं, महीनों बाद जा रहा हूं घर को जैसे हूं मैं जियारत पर, मगर मां से बेचैनी-ए-मिलन को सफरभर रोता रहता हूं। #सफर_ए_रात #अक्सर #मुखातिब #इंतेज़ार_ए_मंज़िल #जियारत #बेचैनी_ए_मिलन #सफरभर