नन्द लाडला मेरा, हर दिलों को यें भाता हैं। सांवला चंद्र मुख, हर जन को लुभाता हैं।। देवकी के गर्भ से जन्में, मथुरा की धरती पावन हुई। पलें यशोदा के आंगन, ब्रज की भूमि तारन हुई।। यमुना के रास रचैय्या, गोपियों के संग नाचें। बजाकर मुरली की मधुर ध्वनि, सब झूमे गायें।। यशोदा का राज दुलारा, मटकी फोड़ मंद मंद मुस्काता हैं। जाकर यमुना के तट पर वो, मुरली मधुर बजाता हैं।। कभी गोपियों के वस्त्र चुराता, कभी माखन चुराता हैं। उंगली पर गोवर्धन उठाकर, सबको अपना दर्श कराता हैं।। #अखंड_आर्यावर्त