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जब मज़हब नफ़रत की बुनियाद बन जाती है सच बोलने

जब मज़हब नफ़रत की बुनियाद बन जाती है




सच बोलने से संगीनों के घेरों में,
अब अंजाम मेरा चाहे जो भी हो।
नहीं चाहिए झरोखे किसी घरों में,
जहां से नफ़रती बयार बहती हो।
देखा तो है अंजाम गांवों शहरों में,
दरवाज़ा खोलें तो सोचो क्या हो।

©अदनासा-
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