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इसमें अंकुर निकल तो आए हैं तू ही बता ये 'फसल' है क

इसमें अंकुर निकल तो आए हैं
तू ही बता ये 'फसल' है कि नहीं

तुझपे कुछ 'शेर' लिखे हैं मैंने
तू ही बता ये 'ग़ज़ल' है कि नहीं

पढूं किताब तो तेरा चेहरा नज़र आता है
तू ही बता ये 'खलल' है कि नहीं

तूने कीचड़ तो कह दिया मुझको
तू ही बता तू 'कमल' है कि नहीं

तेरे 'गलती' पर भी चुप हूँ मैं
तू ही बता ये 'फ़ज़ल' है कि नहीं

मुझे हर हाल में बस  तू' चहिए
इस परेशानी का 'हल' है कि नहीं

तुझे अब 'याद' नहीं आती मेरी
ये मुहब्बत का 'कतल' है कि नहीं

मैं हूँ पागल, मुकर गया था मैं
तू भी वादे पे 'अटल' है कि नहीं

ये मेरी  मौत पे भी  हँसती हैं
तेरी आँखों में 'जल' है कि नहीं

--प्रशान्त मिश्रा "है कि नहीं"
इसमें अंकुर निकल तो आए हैं
तू ही बता ये 'फसल' है कि नहीं

तुझपे कुछ 'शेर' लिखे हैं मैंने
तू ही बता ये 'ग़ज़ल' है कि नहीं

पढूं किताब तो तेरा चेहरा नज़र आता है
तू ही बता ये 'खलल' है कि नहीं

तूने कीचड़ तो कह दिया मुझको
तू ही बता तू 'कमल' है कि नहीं

तेरे 'गलती' पर भी चुप हूँ मैं
तू ही बता ये 'फ़ज़ल' है कि नहीं

मुझे हर हाल में बस  तू' चहिए
इस परेशानी का 'हल' है कि नहीं

तुझे अब 'याद' नहीं आती मेरी
ये मुहब्बत का 'कतल' है कि नहीं

मैं हूँ पागल, मुकर गया था मैं
तू भी वादे पे 'अटल' है कि नहीं

ये मेरी  मौत पे भी  हँसती हैं
तेरी आँखों में 'जल' है कि नहीं

--प्रशान्त मिश्रा "है कि नहीं"