कभी एक अधूरा सा सपना था मेरा, तेरे शहर आने का, मेरा तुझे हाँ बस, बस एक मर्तबा जी भर के देखने का, चाहे फिर कभी भी तुझे देख ना पाऊँ। आज गुजर रहा हूँ मैं जो तेरी गली से, आलम तो देख मेरी तक़दीर का दोस्त, ना आज मेरी ज़िन्दगी में तू है 'मेहरम' अब ना ही तुझे देखने की जुस्तुज़ू है। 'विकाराबाद' । वो जगह जहाँ वो रहती है जिसने मुझे 'इकराश़' नाम दिया। एक सपना था मेरा उसे बस ज़िन्दगी में एक बार देखने का। एक बार उसे ये कहने का, कि मैं उससे कित्ना प्यार करता हूँ। खैर जो हम सोचते हैं, चाहते हैं, होता कहाँ है वैसा। अब ना वो दौर है ना वो मैं। मंजिल भटक गयी, रास्ते बदल गये। अब जो उसके शहर से गुजर रहा हूँ, तो उसकी याद आ रही है बेपनाह पर सच यही है की अब उसे देखने की तमन्ना भी ना रही। एक भूली-बिसरी कहानी या याद कह लो, जो हाँ सच है मेरी ज़िन्दगी का, अपनी कलम से पिरोया है तुम्हारे लिए। ह