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लंका नृप दशानन रावण था बड़ा प्रतापी, विश्व में थी

लंका नृप दशानन रावण था बड़ा प्रतापी,
विश्व में थी जिसकी अगाध महिमा व्यापी ।
कर नित्य कुर्बान दशों सिर का दशशीष,
सर्वोच्च शंकर से जिसने पाया था बख्शीश ।
भय,काल,मृत्यु जिसके थे गुलाम,
देव,मुनिगण करते थे जिसे सलाम ।
विराजे जिसके नाभि में अमृत का घड़ा,
स्वप्नों में भी उसका अविनाशी था कौन खड़ा ।
पर घर बनाया घमंड ने उसके सर पर,
सवार हुई जुल्म और कुबुद्धि उस नर पर ।
खत्म होना था उसका जुल्म और अत्याचार,
तब किया राम ने धनुष चढ़ा के उसका संहार ।
हर लाया था सती सीता को अपनी महल में,
होता है नाश घमंड का किसी न किसी पल में ।

©ANIL KUMAR,)
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