हश्र मेरी शायरी का यूँ न कर, हश्र मेरी शायरी का यूं न करें, मुस्करा कर जनाब। हमारी शायरी भी हम-सी शर्मीली है फिर न लब्ज़ों तक भी आएगी। #hashra