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#OpenPoetry भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या

#OpenPoetry 

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ 
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दआ ।

मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह 
ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ । 

गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही 
पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ । 

क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ 
लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ । 

आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को 
आप के भी ख़ून का रंग हो गया है साँवला । 

इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो 
जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ । 

दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो 
उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ । 

इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात 
अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ ।
#OpenPoetry 

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ 
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दआ ।

मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह 
ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ । 

गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही 
पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ । 

क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ 
लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ । 

आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को 
आप के भी ख़ून का रंग हो गया है साँवला । 

इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो 
जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ । 

दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो 
उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ । 

इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात 
अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ ।