साँझ के साथ पिघलती हूँ, तेरे 'नाम' से ही संवरती हूँ। शर्मा के तुझसे लिपटकर, तेरी आग़ोश में फिर सिमटती हूँ। धड़कनो को तेरी सुनकर, अपने आप को महसूस करती हूँ। तेरे माथे पर अपने अधरों का हक़ समझती हूँ, 'तेरी' होने का 'प्यार सा' एक ख़्वाब बुनती हूँ। सहर होते ही कुछ संभल जाती हूँ, बेफ़िक्री का फिर एक नया स्वांग रचती हूँ। #संवरना #आग़ोश #प्यार #ख़्वाब #बेफ़िक्री #yqbaba #yqdidi Photo credits : ava7.com