राधा के कान्हा के प्रति मनोभाव का वृतांत- ************************************ कुछ अपनी कुछ मेरी सुनो कान्हा इस अधीर मन के समक्ष बहुत कुछ है जो मैं तुमसे कहना चाहती हूँ कान्हा तुम दृश्यहीन होकर भी तुम मन के आईने में मेरे हर लम्हा फेरी सी लगाते हो, बंद करूँ नैनों को तुम समक्ष नैनों के मेरे आ जाते हो,शब्द बहुत हैं कहने को समीप मेरे वृतांत अधूरा सा लगता है जब ख़्वाब मेरे में हम दोनों वार्तालाप होता है, तुम आस हो मेरी विश्वास हो अटूट मेरा, तुम बिन राधा का कोई मोल नहीं कान्हा ढाई अक्षर प्रेम का भी सम्पूर्ण होकर भी अपूर्ण सा लगता है, राधा रानी जी की मनोभाव की दशा का वृतांत जो कान्हा जी के प्रति अपने मन से वार्तालाप करती हुई कहती है, वही हमने शब्दो में दर्शाने की कोशिश की है, जय श्री श्याम जय श्री राधेश्याम 🙏 *************************************** ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1078 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊