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हृदय ( दिल) वैसे सोचे तो दिमाग एक वस्तु ही है

हृदय ( दिल)
    वैसे सोचे  तो दिमाग एक वस्तु ही है।
   दिमाग कभी ख़राब कभी अच्छा होता है।
  किसी शहर में चले जाना चाहे। 
  अंत में दिल की आवाज को ही सुनना पड़ेगा।
  क्योंकि दिल /हृदय में चार वाल ही समस्त वेद रुप है।
इनके बिना किसी को भी संसार में दिमाग को 
चलाना बहुत बड़ा मुश्किल है बड़े -बड़े शहरों में।
नये शहर में तो रहना और भी 
बड़ा मुश्किल दिल के आवाज  को सुने बिना ।

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