ना आदि है ना अंत है, आसमाँ या दामन कहे। गहराइयां इतनी है कि, सागर कहे या मन कहे। एक सुगंधित गंधधारी, ज्ञान या चंदन कहे। रूप कितने जगत में, गुरु कहे या भगवन कहे। गुरु पूर्णिमा ।।।।।