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'दिल और दिमाग़' हाँ! अच्छा नहीं लिखती हूँ मैं, ह

'दिल और दिमाग़' 

हाँ! अच्छा नहीं लिखती हूँ मैं, हूँ भीड़ से थोड़ी अलग भी, 
क्योंकि  मैं दिमाग़ की जगह,  दिल की सुनकर लिखती हूँ।

तहरीरें कर देती बयाँ दिल के उलझे-सुलझे कुछ जज़्बात, 
क्योंकि  मैं दुनिया की जगह, दिल की सुनकर लिखती हूँ।

ज़ख़्म इसके नासूर,  लिखने से ही इलाज उसका होता है,
क्योंकि  मैं अतीत की जगह, दिल की सुनकर लिखती हूँ।

आता नहीं है दिल बहलाना या किसी को बरगलाना मुझे,
क्योंकि  मैं ग़ुरूर की जगह,   दिल की सुनकर लिखती हूँ।

झूठ की बुनियाद पर सीखा नहीं कैसे बनाना घर अपना, 
क्योंकि मैं दिमाग़ की जगह, दिल की सुनकर लिखती हूँ।  Rest Zone 'दिल और दिमाग़' 

हाँ! अच्छा नहीं लिखती हूँ मैं, हूँ भीड़ से थोड़ी अलग भी, 
क्योंकि  मैं दिमाग़ की जगह, दिल की सुनकर लिखती हूँ।

तहरीरें कर देती बयाँ दिल के उलझे-सुलझे कुछ जज़्बात, 
क्योंकि  मैं दुनिया की जगह, दिल की सुनकर लिखती हूँ।
'दिल और दिमाग़' 

हाँ! अच्छा नहीं लिखती हूँ मैं, हूँ भीड़ से थोड़ी अलग भी, 
क्योंकि  मैं दिमाग़ की जगह,  दिल की सुनकर लिखती हूँ।

तहरीरें कर देती बयाँ दिल के उलझे-सुलझे कुछ जज़्बात, 
क्योंकि  मैं दुनिया की जगह, दिल की सुनकर लिखती हूँ।

ज़ख़्म इसके नासूर,  लिखने से ही इलाज उसका होता है,
क्योंकि  मैं अतीत की जगह, दिल की सुनकर लिखती हूँ।

आता नहीं है दिल बहलाना या किसी को बरगलाना मुझे,
क्योंकि  मैं ग़ुरूर की जगह,   दिल की सुनकर लिखती हूँ।

झूठ की बुनियाद पर सीखा नहीं कैसे बनाना घर अपना, 
क्योंकि मैं दिमाग़ की जगह, दिल की सुनकर लिखती हूँ।  Rest Zone 'दिल और दिमाग़' 

हाँ! अच्छा नहीं लिखती हूँ मैं, हूँ भीड़ से थोड़ी अलग भी, 
क्योंकि  मैं दिमाग़ की जगह, दिल की सुनकर लिखती हूँ।

तहरीरें कर देती बयाँ दिल के उलझे-सुलझे कुछ जज़्बात, 
क्योंकि  मैं दुनिया की जगह, दिल की सुनकर लिखती हूँ।