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स से सहरा... ब से बंजारा... और वो 'सब' फ़िज़ूल जो

स से सहरा...

ब से बंजारा...

और वो 'सब' फ़िज़ूल जो कलम कहती है...

"एक भटक जाने को बेताब नज़्म हूँ -
जैसे आसमान के काले कैनवस पे
जान-बूझ के
फैला दी गई
चाँद की स्याही...

जैसे रेत पर उकेरे गए
किसी बच्चे के
लौटते क़दमों के निशाँ..."

©sahaj
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gurudev9570

sahaj

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