भूखे पेट तड़प-तड़प कर जब वो नन्ही जान सोती है .. एक गुब्बारे को बेचने के लिए जब वो चार आसूँ रोती है । खेलने कूदने की उम्र में वो भूखे पेटों का भार ढोती है .. फटे कपड़ों से अपने ज़िस्म को सजाकर वो सिमट-सिमट कर सोती है । ठंड से काँपतें हाँथ-पावँ और तड़पती जीवन की ज्योति है .. दौड़-दौड़ कर अखबार बाटता क्योंकि जरूरत उसकी रोटी है । राह में वो जो गीत गाता है वो तारीफ के काबिल होती है .. फिर वो हाँथ पसारकर खड़ा हो जाता क्योंकि जरूरत उसकी बहुत छोटी है । पेट-पीठ सब सटे हुए , वो उम्मीदों की ऊर्ज़ा का भंडार है .. उसके लिए भूखे पेट उठना और उसी के साथ सो जाना ही संसार है । वो तो जी के काट लेता है हर सीत- गर्मी पर उसका वक़्त ही अब बीमार है .. माँ-बाप का किसीके पता नहीं , लावारिश सा जीने को वो लाचार है । कुछ दातुन कंधे पर टाँगे उसकी हर राह चलते को पुकार है .. आखरी साँस तक दौड़ते रहना ही उसका अब मौत से लड़ने का औज़ार है । इतना घुट कर जीने के बाद भी उसके एक मुस्कुराहट पर बला की खूबसूरती भी लाचार है .. परिश्रम है उसके एक-एक दिन काटने में तभी तो उसकी रातों की नींद में सुकून बेशुमार है । भूखी नन्ही जान....