इम्तिहानों की अग्नि में तपकर, फ़िर भी मैं तो स्वर्ण रहूंगा, छल से मुझको मात मिली है, फ़िर भी मैं तो कर्ण रहूंगा। सूत बताकर द्रोण ने मुझको खड़ा किया फ़िर कोने में, जात दिखा रहे वो मुझको, जो ख़ुद जन्मे थे दोने में। प्राणों का तो भय नहीं था पर भय था मित्रता खोने में, परम शौभाग्य कभी मिल नहीं पाया कुंती पुत्र होने में। सूत जाति के होने से, द्रौपदी संग प्रीत न हो पाई, वचन निभाना और दानी होना, अंत ये रीत न हो पाई, प्राण का जाना निश्चित था और अंत में जीत न हो पाई, पर हार कर भी सदियों तक मैं, सबके मुख पर वर्ण रहूंगा, छल से मुझको मात मिली है, फ़िर भी मैं तो कर्ण रहूंगा। सारथी बनाया कृष्ण को और रथ पर बिठाया हनुमान को, साबित करने ख़ुद को श्रेष्ठ, मुझसे लड़वाया भगवान को, फ़िर कहते हो श्रेष्ठ तुम्हीं हो, क्या कहें इस अभिमान को, वीर योद्धाओं के बगिया का, मैं सबसे उत्तम पर्ण रहूंगा, छल से मुझको मात मिली है, फ़िर भी मैं तो कर्ण रहूंगा। ©Shubham Singh #कर्ण #कर्ण_की_वीरता #सवश्रेष्ठ_धनुर्धर Dhyaan mira Anshu writer