❄ विधा -गीत प्यासी धरती करे पुकार क्यों तरसाओं मेघ मल्हार सूखे नदी कूप तालाब कितना सहे और आफ़ताब काका सूरज होता बदनाम तरु अश्क बहाये सुबह शाम कली खिले ना ही कचनार प्यासी ......(1) हलधर होता चिंतित आज मौन मंडराये बादल राज झमाझम होगी कब बौछार जीव जंतु बेचारे सब लाचार पानी बिन मची है हाहाकार प्यासी......(2) मोर पपीहे व्याकुल दिन रात सूख गये तृण तृण और पात तेज ताप से जन- जन बेहाल छोड़ गऊयें बेसुध हुए गोपाल इन्द्र करो अब तुम उपकार प्यासी.....(3) ✍एन एस गोहिल गौरड़िया(बाड़मेर)राज #साहित्य_सागर प्यासी धरती करे पुकार