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काया की ईंट जुड़ती है जहाँ संबंधों से! और परस्पर ता

काया की ईंट
जुड़ती है
जहाँ संबंधों से!
और परस्पर
तारतम्यता के साथ
बनाती है नेह की दीवार!
जहाँ खट्टे-मीठे
अनुभव बाँह पसारे
मिलते हैं!
सुकून माथा 
सहलाता है
बोझिल दिन को
थकन के बाद!

जहाँ अभी भी
खूंटी पर टँगी शर्ट
तुम्हारी राह तकती है!
तुम्हारी महक में
मेरी साँस बसती है!

वह यादों की 
चारदीवारी ही मेरे लिये
"घर " कहलाता है!! घर तो घर होता है!
काया की ईंट
जुड़ती है
जहाँ संबंधों से!
और परस्पर
तारतम्यता के साथ
बनाती है नेह की दीवार!
जहाँ खट्टे-मीठे
अनुभव बाँह पसारे
मिलते हैं!
सुकून माथा 
सहलाता है
बोझिल दिन को
थकन के बाद!

जहाँ अभी भी
खूंटी पर टँगी शर्ट
तुम्हारी राह तकती है!
तुम्हारी महक में
मेरी साँस बसती है!

वह यादों की 
चारदीवारी ही मेरे लिये
"घर " कहलाता है!! घर तो घर होता है!