अब भी वक्त है सुधर जाओ ऐसे नहीं औरतों को आजमाओ जला कर खाक कर सकती हैं ये हस्ती तुम्हारी भूख अपनी दरिंदगी का ना इससे मिटाओ अरे वो मूर्ख क्यों तू भूलता औकात अपनी हमीं दुर्गा ,हमीं काली ,हमीं महिषासुर मर्दनी क्यों बनते हो नपुंसक अपनी मर्दानगी दिखाओ जहाँ हैवानियत छाये उससे तुम दूर जाओ अगर चलता रहेगा ऐसे ही खेल सारा नही कमजोर हैं हम बदलेंगे सारा नज़ारा #all men of society