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शीर्षक -हिंदी मैं दबी हुई हूं भाषाओं के बोझ तले त

शीर्षक -हिंदी

मैं दबी हुई हूं भाषाओं के बोझ तले
तुम हाथ थाम कर मेरा, उठाओगे क्या?

सुनो,मेरा अस्तित्व मिटाया जा रहा है
तुम मेरी गाथाओं के गीत गाओगे क्या?

मुझे हीन समझते हैं मेरे अपने ही लोग
मेरी भव्यता सभी को समझाओगे क्या?

कितनी सुंदर हूं मैं,कितनी मीठी हूं मैं,,
लिख लिख कर मुझ पर कविताएं सुनाओगे क्या?

एक विदेशी भाषा ने मेरा अधिकार छीन लिया है
मुझे मेरे ही अधिकार वापस दिलवाओगे क्या?

मुझे घर,दफ्तर, गली मोहल्लों से निकाला जा रहा है,
हाथ पकड़ कर मेरा,घर वापसी करवाओगे क्या?

ये हिंदी भारत की बिंदी कही जाती है,,
मुझे गर्व से अपने माथे पर सजाओगे क्या?

मुझे गर्व से अपने माथे पर सजाओगे क्या?🙏

हर्षा मिश्रा 
शिक्षिका
रायपुर

©harsha mishra
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