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शिक्षा साहित्य की प्रासंगिकता आज कुछ गंभीरता से उप

शिक्षा साहित्य की प्रासंगिकता
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साहित्य का शाब्दिक अर्थ सहभाव है। सहभाव शब्द और अर्थ के मध्य विद्यमान होता है। साहित्य की परिभाषा इतनी व्यापकता लिए हुए है कि इसमें संपूर्ण मानव जीवन समाहित किया जा सकता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार ‘जब कि प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परंपरा को परखते हुए साहित्य परंपरा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही ‘साहित्य का इतिहास’ कहलाता है।’ महावीर प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि ‘ज्ञानराशि के संचित कोश का नाम साहित्य है।’ दोनों विद्वानों की परिभाषाओं को ध्यान में रखकर सामान्य बात जो सामने आती है वह यह है कि सर्वप्रथम तो साहित्य प्रगतिशील होता है और इसके अंतर्गत हमारे समाज से संबंधित महत्वपूर्ण, सूक्ष्म तथा गहन ज्ञान समाहित होता है ।

इति........

©Lalit Saxena
   #साहित्यिक_सहायक