।।श्री हरिः।।
47 - वैद्यराज
कृष्ण का नाम ही भवौषधि है, यह बात बड़ी जटा-दाढीवाले ऋषि-मुनियों की अथवा वेद-शास्त्र की। भोले गोप, गोपियाँ इसे नहीं जानते। छोटे गोप-बालक तो भला क्या जानेंगे; किन्तु कन्हाई का स्पर्श सब पीड़ा हर लेता है, यह सबका अपना अनुभव है।
कोई आवश्यक नहीं है कि किसी का सिर पीड़ा ही करे। सच तो यह है कि किसी रोग का कोई अधिदेवता ऐसा नहीं जो किसी की उपासना-आराधना के द्वारा दबाव डालने पर भी नन्दब्रज की ओर देखने का साहस कर सके। स्वेच्छा से तो क्या आएगा।
अघ और अरिष्ट का अर्थ तो आप जानते ही हैं। इनके मूर्तिमान अधिदेवता आये ब्रज में। इसलिए आये कि कंस के अनुचर थे। लेकिन बाबा नन्द के इस नटखट लाल ने उन्हें खेल-खेल में कलेवर से ही नहीं आवागमन से भी मुक्त कर दिया। अब किसी और को दुस्साहस करना हो तो वह भी कर देखे।