पता नहीं ये हैवानियत ओ कत्लेआम का सिलसिला, न जाने कब से चला आ रहा है। करके मोहब्बत के टुकड़े-टुकड़े, कभी फ्रिज में, तो कभी बोरे में भरा जा रहा है। इंसानी जिस्म मनोरंजन के लिए ,मशीनों की तरह, करने पर इंकार ,काट बोरों में भरा जा रहा है। कोई बोलता नहीं कुछ भी क्यों, किस ख़ुशी में ,ऐ अत्याचार किया जा रहा है। ©Anuj Ray #इंसाफ की पुकार