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साहब जीने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है कभी किसी की

साहब जीने के लिए
बहुत कुछ करना पड़ता है
कभी किसी की जूठन
किसी कड़वी बात
किसी गंदी नजर
सब कुछ सहना पड़ता है
लेकिन बात यही खत्म नही होती
बिलखते बच्चे
खिलौनों के लिए तरसते बच्चे
किसी को दुध 

तो किसी को दवा
की दरकार होती
नींद नही आती साहब तब
भी कोई एक उम्मीद बंधाता
लगता है कोउ मसिहा आ गया
लेकिन प्रस्ताव ऐसा की मां तार तार
हो जाता है
तो फिर उसके साथ होना जोड़ता है
साहब सोना पड़ता है
हा सोना पड़ता है

 न

©ranjit Kumar rathour
  साहब समझो जरा

साहब समझो जरा #कविता

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