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जिंदगी पहेलियों में बीत रही हैं वो अपनी सहेलियों

जिंदगी पहेलियों में बीत रही हैं

वो अपनी सहेलियों से जीत रही है

इक लगाई थी शर्त उसने की मैं किसका?

श्याम राधा का ही है ये तो रीत रही हैं 

कैसा मुनाफ़िक कोई है कैसा रहगुज़र 

सब क़िस्मत का खेल है उस ही की सीत रही हैं 

(Seet: charcha, ख्याति)

जबसे बाहों में तेरी है तख्बीत हो चले (तखबीत _ दीवाने)

लगती ही नहीं है क्यूं झूठी ये शीत रही हैं 

अना को समझे हो मामूली अना आम नही हैं

ये मशहूर है बहुत मगर मज़ीत नहीं हैं

(मज़ीत: घीसी हुई या पुरानी)

©Ana
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