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#OpenPoetry लिखता हूँ आज भी अगर लिख नहीं पाता हूँ।

#OpenPoetry लिखता हूँ आज भी अगर
लिख नहीं पाता हूँ। 

फिर भी हृदयपर रखकर पत्थर
कलम आज मैं रगड़ता हूँ । 

लिखकर आज मैं किस्सा 
मोहब्बत का भूलाना चाहता हूँ। 

हज़ार बार खोलंके ये दिल 
ना भूला पाता हूँ।ना बता पाता हूँ।

चाहता हूँ आज तोड़ दू सारी रंजिशे
फिर बांध लेती हैं जमाने के बंदिशे। 

बोल के सच,दबाकर झूठ मैं
फिर को ओठों को जलाता हूँ ।

जलाकर ओठों को फिर मैं हँसाता हूँ ।
बेचके नींद मैं ख्याबो कों सुलाता हूँ ।

हँसाकर आपको मैं हँस नही पाता हूँ ।
मर कर भी मैं मर नहीं पाता हूँ ।

रो कर आज मैं इतना ही लिख पाया हूँ ।
तोड़कर कलम आज फिर मैं जिंदिगी से हारा हूँ।
#OpenPoetry लिखता हूँ आज भी अगर
लिख नहीं पाता हूँ। 

फिर भी हृदयपर रखकर पत्थर
कलम आज मैं रगड़ता हूँ । 

लिखकर आज मैं किस्सा 
मोहब्बत का भूलाना चाहता हूँ। 

हज़ार बार खोलंके ये दिल 
ना भूला पाता हूँ।ना बता पाता हूँ।

चाहता हूँ आज तोड़ दू सारी रंजिशे
फिर बांध लेती हैं जमाने के बंदिशे। 

बोल के सच,दबाकर झूठ मैं
फिर को ओठों को जलाता हूँ ।

जलाकर ओठों को फिर मैं हँसाता हूँ ।
बेचके नींद मैं ख्याबो कों सुलाता हूँ ।

हँसाकर आपको मैं हँस नही पाता हूँ ।
मर कर भी मैं मर नहीं पाता हूँ ।

रो कर आज मैं इतना ही लिख पाया हूँ ।
तोड़कर कलम आज फिर मैं जिंदिगी से हारा हूँ।