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"पहली चुंबन" शाम का समा था, हल्की-हल्की सी हवाएं च

"पहली चुंबन"
शाम का समा था, हल्की-हल्की सी हवाएं चल रही थी,
बारिश का मौसम था,सूरज भी बादलों में छुपा था,
हल्का हल्का अंधेरा भी छाया था,कायनात भी मेहरबान थी हम पे।

अंधेरा भी बढ़ता ही जा रहा था,पास में बैठे हम दूरियां भी मिटती ही जा रही थी,
बादल का यु गड़गड़ाना,और बारिश का लम्हा भी खिल पड़ा,
और शुरू हो गई अचानक से रिमझिम बारिश की बूंदे।

कुदरत ने चार चाँद लगा दिये हमारी मुलाकात में, 
तेज ठंडी का समा बढ़ता गया, 
और भाग के कोने में खड़े हो गए हम, 
और ठंडी से वो बाजू मे कांप रही थी, 
मैंने उसे सहारा देकर अपने आगोश में खींच लिया, 
वह एकदम से सहमी सी मेरी आँखों में देखने लगी, 
दोनों एक दूसरे की गरमाहट महसूस कर रहे थे, 
दोनों की नज़दीकियांँ इतनी बढ़ी की, 
मैंने उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए। 

वह पहली चुंबन का एहसास जैसे लगा की मिली हो जन्नत हमे, 
एक दूसरे में खोये हम होठों से होठों का रस पिये जा रहे थे हम, 
जवानी का जोश भी चढ़ते जा रहा था, 
और दिल की आग बढ़ती ही जा रहा थी। 
दिल तो चाहता था यह लम्हा कभी भी ख़त्म ही ना हो और, 
यूँ ही सिमट के रहे हम एक दूसरे मे ही। 

आज भी जब बारिश होती है तब वह पहले, 
चुंबन की याद ज़हन में ताज़ा हो जाती है, 
और सुना सुना सा मन यह मेरा, 
तेरी यादों से हरा भरा हो जाता है।

-Nitesh Prajapati 




— % & रचना क्रमांक :-7 
#collabwithकोराकाग़ज़
#जश्न_ए_इश्क़
#विशेषप्रतियोगिता
#kkजश्न_ए_इश्क़
#kkvalentinesweek2022
#कोराकाग़ज़
#kknitesh2022
"पहली चुंबन"
शाम का समा था, हल्की-हल्की सी हवाएं चल रही थी,
बारिश का मौसम था,सूरज भी बादलों में छुपा था,
हल्का हल्का अंधेरा भी छाया था,कायनात भी मेहरबान थी हम पे।

अंधेरा भी बढ़ता ही जा रहा था,पास में बैठे हम दूरियां भी मिटती ही जा रही थी,
बादल का यु गड़गड़ाना,और बारिश का लम्हा भी खिल पड़ा,
और शुरू हो गई अचानक से रिमझिम बारिश की बूंदे।

कुदरत ने चार चाँद लगा दिये हमारी मुलाकात में, 
तेज ठंडी का समा बढ़ता गया, 
और भाग के कोने में खड़े हो गए हम, 
और ठंडी से वो बाजू मे कांप रही थी, 
मैंने उसे सहारा देकर अपने आगोश में खींच लिया, 
वह एकदम से सहमी सी मेरी आँखों में देखने लगी, 
दोनों एक दूसरे की गरमाहट महसूस कर रहे थे, 
दोनों की नज़दीकियांँ इतनी बढ़ी की, 
मैंने उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए। 

वह पहली चुंबन का एहसास जैसे लगा की मिली हो जन्नत हमे, 
एक दूसरे में खोये हम होठों से होठों का रस पिये जा रहे थे हम, 
जवानी का जोश भी चढ़ते जा रहा था, 
और दिल की आग बढ़ती ही जा रहा थी। 
दिल तो चाहता था यह लम्हा कभी भी ख़त्म ही ना हो और, 
यूँ ही सिमट के रहे हम एक दूसरे मे ही। 

आज भी जब बारिश होती है तब वह पहले, 
चुंबन की याद ज़हन में ताज़ा हो जाती है, 
और सुना सुना सा मन यह मेरा, 
तेरी यादों से हरा भरा हो जाता है।

-Nitesh Prajapati 




— % & रचना क्रमांक :-7 
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