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कभी तुम में तुम नहीं मिलते, कभी मैं मुझ सा नहीं रह

कभी तुम में तुम नहीं मिलते,
कभी मैं मुझ सा नहीं रहता,
बातें तो होती है अब भी,
पर अब मैं तुमसे राज़-ए-दिल नहीं कहता।
लहज़ा जान लेता हूँ,
गलतियां मान लेता हूँ,
बात बढ़ने से पहले ही,
मैं अब खुद को संभाल लेता हूँ।
कभी संध्या में रात हो जाती है,
कभी दिन में उजाला नहीं होता।
खिड़कियों से तो आज भी देखता हूँ,
पर वो चाँद कम्बख़्त हमारा नहीं होता।
कभी तुम में तुम नहीं मिलते,
कभी मैं मुझ सा नहीं रहता।

 #yqbaba #yqdidi #unbrandedkalakar #tummeintum #ohhpoetry
कभी तुम में तुम नहीं मिलते,
कभी मैं मुझ सा नहीं रहता,
बातें तो होती है अब भी,
पर अब मैं तुमसे राज़-ए-दिल नहीं कहता।
लहज़ा जान लेता हूँ,
गलतियां मान लेता हूँ,
बात बढ़ने से पहले ही,
मैं अब खुद को संभाल लेता हूँ।
कभी संध्या में रात हो जाती है,
कभी दिन में उजाला नहीं होता।
खिड़कियों से तो आज भी देखता हूँ,
पर वो चाँद कम्बख़्त हमारा नहीं होता।
कभी तुम में तुम नहीं मिलते,
कभी मैं मुझ सा नहीं रहता।

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itzzrajatt9983

Itzz Rajatt

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