White अमूमन मैं अपने ख्वाब अपनी औकात में देखता हूं: पर ना जानें क्यों, तुम्हे अपने साथ देखता हूं ! देखने को मैं भी देखूं तेरे गाल, आँख, होंठ और चेहरा; पर ना जानें क्यों, मैं तेरे हाथ देखता हूं ! मैं सो कर उठू तो देखने को पड़ा है सारा शहर पर ना जानें क्यों मैं चढ़े दिन में तेरे ख्वाब देखता हूं ©बोलती दीवार #GoodNight love poetry in hindi hindi poetry on life