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खिड़की से झांकता मन मैं टीवी देख रही थी कि अचानक

खिड़की से झांकता मन

मैं टीवी देख रही थी कि अचानक बिजली चली गई। 
दरवाजा बंद होने से पूरे घर में अंधेरा लग रहा था पर पूरा 
अंधेरा नहीं था। टीवी के पास की खिड़की से उजाला अंदर
आ रहा था। 
खिड़की को देखकर अचानक ख्याल आया कि हम में से 
कितनों के सपने भी तो ऐसे ही मेरी तरह मन के एक बंद 
कमरे में बैठे रहते हैं और झांकते रहते हैं खिड़की से बाहर।
 खिड़की पर लगी शरिया रोकती हैं उनको जाने से बाहर । 
दरवाजा घर वाले बंद कर देते हैं जैसे मेरे लिए किया है। 

मन एक किराए का कमरा बन जाता है जिसका मालिक ये 
समाज है और हम इस किराए के कमरे की खिड़की का 
नुकसान नहीं कर सकते इसलिए सपने खुद ही शांति से 
मंजूर कर लेते हैं खिड़की के अंदर की दुनिया।

लाइट आ गई तो मैं फिर tv देखने लगी

©SHIVAM KARNE
  रोज का किस्सा
shivamkarne5006

SHIVAM KARNE

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रोज का किस्सा #Life

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