खोकर वज़ूद अपना वो सदी न बन सकी, अस्तित्व मिटाकर कभी नदी न बन सकी, ख़्वाबों ख़यालों से मिटाकर बंदिशें तमाम, सागर की तमन्ना तो की सती न बन सकी, अफसोस यही है मलाल मन से ना गया, मिलना नसीब में न था यती न बन सकी, - शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' ©Shashi Bhushan Mishra #यती न बन सकी#