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सोचते रहने से हल नहीं आएंगे यह दिन लौट कर कल नहीं

सोचते रहने से हल नहीं आएंगे
 यह दिन लौट कर कल नहीं आएंगे
जो सूखी हैं आंखें बिरहा ग्रीष्म में
 इन कुओं में अब जल नहीं आएंगे

 पनघट पर गागर एक फूटा हुआ
जैसे हो दिल कोई टूटा हुआ
 पांव जल में नहीं वह महावर रंगे
 पानी में भी कमल नहीं आएंगे #प्रेम गीत
सोचते रहने से हल नहीं आएंगे
 यह दिन लौट कर कल नहीं आएंगे
जो सूखी हैं आंखें बिरहा ग्रीष्म में
 इन कुओं में अब जल नहीं आएंगे

 पनघट पर गागर एक फूटा हुआ
जैसे हो दिल कोई टूटा हुआ
 पांव जल में नहीं वह महावर रंगे
 पानी में भी कमल नहीं आएंगे #प्रेम गीत