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"एक बचपन" कभी किसी वक्त में, एक बचपन हुआ करता था

"एक बचपन"


कभी किसी वक्त में, एक बचपन हुआ करता था, तब ना कोई सब्र, ना कोई डर, और ना कहीं कोई एक, सिर्फ अपना हुआ करता था, ख़ामोश भले तब ज़रूर थे, बोल भले कुछ ना पाते थे, समझ भले कुछ ना आता था, लोग भले बच्चा समझकर, प्रेम ओर गोद का सहारा बताते थे, मगर फिक्र, डर, दस्तूर, अंदाज़, फासले, मोहब्बत, दर्द, शिकवे, दूरी, इनका ना दौर था और ना शौक, ना सोच थी और ना समझ, तब भले अक्ल से कच्चे जरूर हों, मगर मन से सच्चे तो थे, तब बस एक गोद, एक दामन, एक आँचल में सारे ज़माने का सुकून और खुशी समाहित थी हमारे खातिर, किसी ओर के लिए हम उनके थे या नहीं, पता ही नही था, बस हमारे लिए सब बेवजह अपना हुआ करता था, भले कोई भी जख्म हो, चाहे गहरा कितना, कभी नासूर नही होता था, तब एक आँसू की भी कीमत होती थी, उसका भी क़िरदार हुआ करता था, गिरना – गिर कर उठना, शरारतें करना, वहीं एक मिट्टी में अपने सपने बुनना, बेवजह चेहरे पर एक मुस्कान लेकर चलना, ना कुछ पाने की ख्वाइश, ना कुछ खोने का डर, ना कोई लत, ना कोई कमज़ोरी और उन्ही शरारतों के बीच एक हल्की सी आवाज और मुस्कान को देख कर, अपनी सारी थकान को भूलना, वो बचपन हुआ करता था साहब, और मैं आज भी यही कहता हूं, की वो जो बित गया लम्हा, वो जो लौट कर नहीं आएगा, आज अब इस जिन्दगी में, अपने पर वो, फिर ना फैलाएगा।

©SHIVAM SEN
  "EK PYAR EK DARD"
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SHIVAM SEN

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"EK PYAR EK DARD" #Shayari

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