पतंगे मेरी कभी वफादार दोस्त हुआ करती थीं डोरें दूसरों की काटकर आसमान में किसी वेस्टर्न डैंसर की तरह तो कभी ब्रूस ली की तरह हवा में ही लाइट के मल्टिपल रिफलेक्शन के भांति ब्राउनियन मोशन करने लगती थी फिर अचानक कोई उसकी अपनी ही साथी डोर उसकी काटकर उसी तरह इठलाने लगती थी और यह क्रिया आसमान में सूरज ढलने तक निरंतर चलती रहती थी बेदम शायर आयुष कुमार गौतम की यादों के झरोंखों से पतंग का ब्राउनियन मोशन