छुप छुप के वो मेरे हालात देखता है कभी कभी नहीं दिन रात देखता है डरता बहुत है मिरे बिखरने से भी और मिरे बिखरे बिखरे जज्बात देखता है क्या क्या दलीलें पेश होंगी मनाने में रूठकर मुझसे मिरे ख़यालात देखता है किसके हाथ है मिलना बिछड़ना ये सब मुकद्दर पे मोहब्बत की विसात देखता है ये कलम तो उसकी दिवानी है और वो कलम की कशिश के करामात देखता है ©अज्ञात #कलम