तेरे आगे गिड़गिड़ाए कोई कब तक, वास्ता अपनी मुहोब्बत का दे कोई कब तक, वो जिसकी फितरत में बेवफाई हो, ढूंढ ही लेगा बहाना कोई जाने का भागकर। गर होती कदर उसे तेरे इश्क़ की, आता भागकर वो छोड़ सब कुछ, पर मतलब से भरी इस दुनिया में, ऐसी उम्मीद भी क्या करना किसी से। बहुत खेल चुका वो मेरे दिल से, अब और नहीं बर्दाश्त होता मुझसे, यूँ तो कोई कसर छोड़ी नहीं अपनी तरफ से, पर अब थक चुकी हूं मैं भी बेवफ़ा से वफ़ा करते करते। शिकायत थी उसे की मन उसका नहीं बहलाती हूँ मैं, शायद ये भूल चुका था उसका खिलौना नहीं हूं मैं, लगता है उसे, दे सकता है सज़ा वो मुझे बिना किसी ख़ता की, भूल ये भी गया वो ये दुनिया उसकी नहीं है खुदा की। ना कोई स्वर्ग, न कोई नरक, होगा सबका हिसाब यहीं पर, मुझे सज़ा देने वाले ओ घमंडी इंसान, जा तेरी बर्बादी की अब शुरू होगी दास्तान। सम्भाल कर रखना ये अपना ग़ुरूर अपने पास, धरती गोल है, तुझे खुद मेरे कदमों में लाएगी, तुझे तेरे अंजाम तक भी अब जिंदगी ही पहुँचाएगी, मैं तो अब तुझे बद्दुआ भी दूँ तो भी मेरी तौहीन हो जाएगी।