ठीक तभी, उस मंजर में सहसा पीछे से कंधों पर हाथ वह अप्रत्याशित!... भभक कर कंदील स्मृतियों के पिघले मोम सा गरम स्पर्श वह... रतजगा रक्तिम नींद से बोझिल, उनींदे ख्वाबों में उलझी, आंखों ही रिसता... अलसाई उनींदी भोर लिये अरूणिम आभा से तब परेशां नजरें हैं देखती थोड़ा साफ, कुछ झिलमिल - इक चेहरा! #अभिव्यक्ति_का_डस्टबिन @manas_pratyay ©river_of_thoughts #abhivyakti_ka_dustbin #philosophy