जिनके घरों में दो जून के फांके होते हैं जो जिंदगी भर दो गज जमीन पर सोतें हैं जो न मौसम के कहर से डरते हैं जो न तूफान की प्रचंडता से एक पग पीछे करते हैं उस अन्नदाता की मत पूछिए साहिब जो कभी-कभी अपनी जिंदगी तक खोते हैं उनकी शख़्सियत को दिल से सलाम उनकी इंसानियत को दिल से सलाम