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बाज़ार में आते ही वो कलम बेगानी लगती है हर बार वो द

बाज़ार में आते ही वो कलम बेगानी लगती है
हर बार वो दर्द-ऐ-दिल की वही कहानी लगती है
ज़बान भी कट जाती है, ठेकेदारों की मनमानी से
वो मेरी माशूका अब किसी औऱ की जानी  लगती है which one is better???
बाज़ार में आते ही वो कलम बेगानी लगती है
हर बार वो दर्द-ऐ-दिल की वही कहानी लगती है
ज़बान भी कट जाती है, ठेकेदारों की मनमानी से
वो मेरी माशूका अब किसी औऱ की जानी  लगती है which one is better???