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एक रोज जब सूरज ढल चुका था। पंछियों का कारवां भी,

एक रोज जब सूरज
ढल चुका था। 
पंछियों का कारवां भी,
अपनी मंज़िल की तरफ
बढ़ रहा था।
कोई था जो उस
नीले आसमां के सागर में, 
हवाओं के सफिना पे
सवार होकर, 
मौज़ में कभी इधर कभी उधर 
इक बंजारे की तरह भटक रहा था। 
वो रंग-बिरंगी चीज 
पतंग थी।
वह अपने धुन में उड़ने को बेताब थी,
पर वह भूल गयी की, उसकी डोर किसी
और के हाथ मे थी।
देखते-ही-देखते एक झटके में, 
डोर और हवा दोनो ने उससे 
साथ छुड़ा लिया।
कुछ ऐसा ही है अपना जीवन,
डोर किसी और के हाथ मे; 
जो हमारी उड़ान को दायरे में रखता हैं।
और हवा है समाज,
जिधर समाज, उधर हमारी पतंग।
पर ये मत भुलना की, 
वक़्त आने पे दोनो ही 
अपना-अपना 
दामन खींच लेंगे।
 #yqbaba #yqdidi #kites #life #love
एक रोज जब सूरज
ढल चुका था। 
पंछियों का कारवां भी,
अपनी मंज़िल की तरफ
बढ़ रहा था।
कोई था जो उस
नीले आसमां के सागर में, 
हवाओं के सफिना पे
सवार होकर, 
मौज़ में कभी इधर कभी उधर 
इक बंजारे की तरह भटक रहा था। 
वो रंग-बिरंगी चीज 
पतंग थी।
वह अपने धुन में उड़ने को बेताब थी,
पर वह भूल गयी की, उसकी डोर किसी
और के हाथ मे थी।
देखते-ही-देखते एक झटके में, 
डोर और हवा दोनो ने उससे 
साथ छुड़ा लिया।
कुछ ऐसा ही है अपना जीवन,
डोर किसी और के हाथ मे; 
जो हमारी उड़ान को दायरे में रखता हैं।
और हवा है समाज,
जिधर समाज, उधर हमारी पतंग।
पर ये मत भुलना की, 
वक़्त आने पे दोनो ही 
अपना-अपना 
दामन खींच लेंगे।
 #yqbaba #yqdidi #kites #life #love
rohitpatel8837

Rohit Patel

New Creator