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बोध ______ तेरे लब पर जो ख़ामोशी है उसे टूट कर ब

 बोध
 ______

तेरे लब पर जो ख़ामोशी है उसे टूट कर बिख़र जाने दो 
जो क़ैद है दर्द कहीं तेरे अंदर उसे आँखों से बरस जाने दो

जो साँसों में बसी उम्मीद है ज़िंदगी की उसे मुस्कान बन खिलखिलाने दो 
धोखे ने शक़ के दायरे में रहने को बेहद मजबूर किया अब ज़रा विश्वास को ख़ुद में समाने दो

ग़म की परछाईं से रिश्ता ख़ूब निभा लिया अब ख़ुशी की रौशनी को तुम अपना बन जाने दो 
तन्हाई की भीड़ में कहीं खो न जाओ किसी के साथ से बने महफ़िल में तुम ख़ुद को पा जाने दो

ये जो तेरी नज़रें मेहरबां हो जाती है मदद को जाने-अंजाने अजनबियों पे 
एक दिल है मेहमाँ तेरा उसे अपना ईमान बन जाने दो

यूँ जो बेवजह ख़ुद का गुनेहगार बने बैठे हो 
ख़ुदा को ख़ुद के इन्सां होने का गवाह बन जाने दो

मनीष राज

©Manish Raaj
  #बोध