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जीत जैसे सिकन्दर सोचता है शेर वैसे सुख़नवर सोचता है

जीत जैसे सिकन्दर सोचता है
शेर वैसे सुख़नवर सोचता है

तेरे बारे में  मैं सोचूँ, न सोचूँ
मेरे भीतर का शायर सोचता है

भले ख़ामोश हो बाहर से लेकिन
बहुत अंदर ही अंदर सोचता है

मैं तुझको इस तरह से सोचता हूँ
परिंदा जैसे अम्बर सोचता है

दुआ मेरी ख़ुदा तक लेके जाए
कहाँ इतना पयम्बर सोचता है

ख़ुदा से तुझको ऐसे माँगता हूँ
भरी ठंडक में जैसे गिड़गिड़ाता
शख़्स पाने को चादर सोचता है

--प्रशान्त मिश्रा— % & मेरे अन्दर का शायर सोचता है
जीत जैसे सिकन्दर सोचता है
शेर वैसे सुख़नवर सोचता है

तेरे बारे में  मैं सोचूँ, न सोचूँ
मेरे भीतर का शायर सोचता है

भले ख़ामोश हो बाहर से लेकिन
बहुत अंदर ही अंदर सोचता है

मैं तुझको इस तरह से सोचता हूँ
परिंदा जैसे अम्बर सोचता है

दुआ मेरी ख़ुदा तक लेके जाए
कहाँ इतना पयम्बर सोचता है

ख़ुदा से तुझको ऐसे माँगता हूँ
भरी ठंडक में जैसे गिड़गिड़ाता
शख़्स पाने को चादर सोचता है

--प्रशान्त मिश्रा— % & मेरे अन्दर का शायर सोचता है