इस कद्र महफिलों मे रवानी बन गई, दो पल जहाँ खड़े हुए कहानी बन गई। दो पल किसी को प्यार से देखा जो हमने, हमारी बदनामियों की वो निशानी बन गई। खिलौनों की जगह रिश्तों से खेलते हैँ हम, हमारा बचपना ही हमारी जवानी बन गई। इस कदर प्यार किया था हमने उनको, उनका दिया हर जख्म निशानी बन गई। ना बचपना होता ना जवानी होती ना तेरी मेरी ये कहानी होती ना महफिलें होती ना रवानी होती ना जश्म होते ना निशानी होती