अनकहे लफ्ज भी कुछ कमाल करते हैं,, निगाहें उठती नहीं थी जिनकी,,, वो भी ना जाने क्या क्या अब सवाल करते हैं शहर ये फुर्सत-ए-गुम है किसी पत्थर की हिफाजत में,,, जरा अंजान मंजर है मोहब्बत दर्द-ओ - गम की देखभाल करती है।।। निगाहें उठती नहीं थी जिनकी,,, वो भी ना जाने क्या क्या अब सवाल करते हैं।। कद्र इस वक़्त की कर लो ना फिर ये लौट कर आता,,,, जो बेकदरी से बिताते हैं फिर उम्रभर मलाल करते हैं।। निगाहें उठती नहीं थी जिनकी,,, वो भी ना जाने क्या क्या अब सवाल करते हैं नज़र सपनों पे जो रख्खो तो निगाह एक तारीख पर भी रखना,,,, निगाहें वक़्त पर करके लोग फैसले बेमिसाल करते हैं।।। निगाहें उठती नहीं थी जिनकी,,, वो भी ना जाने क्या क्या अब सवाल करते हैं सब्र अच्छा बहाना है दिल को सुकून दिलाने का,,, पर बेसब्रे लोग ही अक़्सर जुनून को पार करते हैं निगाहें उठती नहीं थी जिनकी,,, वो भी ना जाने क्या क्या अब सवाल करते हैं।।। ख़यालों में किसी के रहकर ना यूँ बर्बाद हो जाना,,,, जिनकी तुम जुस्तजू थे तब,,, अब ना वो तेरा ख्याल करते हैं।।। निगाहें उठती नहीं थी जिनकी,,, वो भी ना जाने क्या क्या अब सवाल करते हैं।।।