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तुम मुझसे रोज़ वही शेर सुनती हो, और मैं कहता हूं ल

वो पेड़ों के बारे में खबर गलत थी, वो लूटपाट नहीं थी पतझड़ थी।
तुम मुझसे रोज़ वही शेर सुनती हो, 
और मैं कहता हूं लो गज़ल मुकम्मल हुई
तो तुम कहती हो
मैं बाकी हूं अभी पूरी कहां हुई।

उसको इन्तज़ार है उस मकते का
और मैं नाम नहीं लेता,

वो पेड़ों के बारे में खबर गलत थी, वो लूटपाट नहीं थी पतझड़ थी। तुम मुझसे रोज़ वही शेर सुनती हो, और मैं कहता हूं लो गज़ल मुकम्मल हुई तो तुम कहती हो मैं बाकी हूं अभी पूरी कहां हुई। उसको इन्तज़ार है उस मकते का और मैं नाम नहीं लेता,

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