तुम मुझसे रोज़ वही शेर सुनती हो, और मैं कहता हूं लो गज़ल मुकम्मल हुई तो तुम कहती हो मैं बाकी हूं अभी पूरी कहां हुई। उसको इन्तज़ार है उस मकते का और मैं नाम नहीं लेता, कौन पहले मर्सिया* पढ़े अभी कयामत कहां हुई। *मर्सिया का अर्थ है मरने वाले को याद करके रोना और उसके गुणों को याद करना. मैं गुनगुना लेता हूं इक धुन में रहता हूं उसको भी कुछ-२ अन्दाज़ा है बिना शब्दों के वो तर्ज़ क्या हुई। और जो लफ्ज़ जोड़ती है गज़ल, उनसे सांसे उखड़ रही हैं, आलाप के बिना फिर जिगर में जान कहां से हुई। जब तक जान थी पत्तों में पतझड़ भी बहार हुई अब रास्ते पर आ गई है, सब जगह बिखरी है पेड़ों पर लूटपाट कहां हूई। वो पेड़ों के बारे में खबर गलत थी, वो लूटपाट नहीं थी पतझड़ थी। तुम मुझसे रोज़ वही शेर सुनती हो, और मैं कहता हूं लो गज़ल मुकम्मल हुई तो तुम कहती हो मैं बाकी हूं अभी पूरी कहां हुई। उसको इन्तज़ार है उस मकते का और मैं नाम नहीं लेता, Quotes, Shayari, Story, Poem, Jokes, Memes On Gokahani