सूरज की किरन मचल गई थी शिमले से बर्फ पिघल गई थी सब कांधों पर झोले थे हर राह जाता दिखने लगा फिर लक्कड़ बाज़ारों मे था मेशलोम बिकने लगा हिना की भी खुशबू अब तेरे हाथों से निकल गई थी सूरज की किरन मचल गई थी शिमले से बर्फ पिघल गई थी फूलों की घाटी मे फूल वजरदंती के फूट गए लाल जून व टाईडमन भी शाखों से थे टूट गए खुश्क हवा भी अस्सू के घर के नक्शे चल गई थी सूरज की किरन मचल गई थी शिमले से बर्फ पिघल गई थी सिंधूर, गजरा, कंगन तेरे चमके थे तेरी काया मे याद करो वो अंतिम क्षण वो देवदार की छाया मे सुहागरात की रात भी यह चुपके से ही ढल गई थी सूरज की किरन मचल गई थी शिमले से बर्फ पिघल गई थी @duttyuvraj