एक दिन यादों की गठरी, कुछ धूल पड़ी ठंडी सिकुड़ी, स्पर्श भावनाओं का पा जब, नर्म हुई ,जो अब तक अकड़ी । दीवाने ने गाँठ खोल कर , बस कुछ पन्ने बिखराये थे , ये उनमें से अपनी यादें, भीगी पलकों से चुनती थी , एक दीवाना किस्सा कहता , एक दिवानी सुनती थी ।। ©Dinesh Paliwal #Gathri #Yaadain