कभी महक की तरह गुलों से उड़ते हैं,तो कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं, ये कैंचियां हमे उड़ने से खाक रोकेंगी,हम तो परों से नही हौसलों से उड़ते है। ©Dhurve ji Dhurve lagendrapal dhurve