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गम कि स्याह रात कितनी काली क्यों न हो उम्मीद का एक

गम कि स्याह रात कितनी काली क्यों न हो
उम्मीद का एक दीपक काफी है उसे हराने के लिए

नाकामियाबियों का दौर भले हि लम्बा हो
हौसले कि एक जीत काफी है उसे भुलाने के लिए

अंधेरा कितना हि घना क्यों न‌ हो
रौशनी कि एक किरण हि काफी है उसे भगाने के लिए

आशंकाओं कि काली घटा भले हि गहरी क्यों न हो
आत्मविश्वास का सुरज काफी है उससे पार पाने के लिए।

©Amit Sir KUMAR
  #Exploration गम कि स्याह रात कितनी काली क्यों न हों.......

#Exploration गम कि स्याह रात कितनी काली क्यों न हों....... #कविता

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