#OpenPoetry फ़िज़ा में जौर था , तू हिन्दू मैं मुस्लिम का ही शोर था , घरों में आग थी हो चुकी , बस्तियाँ राख थी , ये कैसा इंसानियत का तौर था , भाई भाई को ही काट रहा था , कहता अपनी क़ौम छाँट रहा था , ये कैसा है वक़्त आज , लाडला ही माँ को बाँट रहा था , क्योँ आज अपनों पर ही एहतिमाल था , क्या नहीं उनको कोई मलाल था , हर त्यौहार था चीख़ रहा , माज़ी माँग था भीख रहा , दफ़अ'तन आया क्या दौर था , फ़िज़ा में जौर था , तू हिन्दू मैं मुस्लिम का ही शोर था , घरों में आग थी हो चुकी , बस्तियां रख थी , ये कैसा इंसानियत का तौर था, #अभय माज़ी = अतीत जौर = अत्याचार , तौर = ढंग एहतिमाल = शक , दफ़अ'तन = अचानक #nojoto #jaur #daur #taurdelhi